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कुछ मन की

कुछ मन की

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जाने क्यों चाँद आज उदास सा लगा 

मैं उदास थी बात न कोई ख़ास थी 


ना दिल में कोई आस थी 

बस भारी सी सांस थी 


आज चाँद भी बेआस सा लगा 

आसमान से कितनी बातें करती थी 


चाँद से मिलकर कितनी शरारते करती थी 

पर आज ना मैं बोली और 


चाँद भी चुपचाप सा लगा 

जाने क्यों चाँद आज उदास सा लगा।


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