कुछ लिखना चाहती हूं
कुछ लिखना चाहती हूं
जब कुछ लिखना चाहती है
दिल के चंद दास्तां लिख बाकी
सब मिटा देती हूं
कहना तो बहुत कुछ चाहती हूं
लेकिन गहरी रातों के अंधेरों की सिसकियां में
कहीं गुम हो जाती हूं सांसों में रची बसी बेचैनी भी
मीठा सा अहसास करा जाती है
जिंदगी अब अपनी शर्तों पर जी रही हूं
सितम तेरे तोड़ न पाए हौसले
मेरे अरमानों की कभी पंछियों संग
बातें कर तो कभी बरसती बूंदें
ओढ़ झूम झूम बातें खुद से कर लेती हूं।