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Gurudeen Verma

Abstract

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Gurudeen Verma

Abstract

कुछ कह नहीं सका उससे

कुछ कह नहीं सका उससे

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हाँ, रोज आती है वहाँ वह,

उस मकान की दूसरी मंजिल पर,

जहाँ रहता हूँ मैं किराये से,

वह भी करती है काम,

उस मकान की साफ- सफाई।


हाँ, मैंने पूछा नहीं कभी उससे,

उसका नाम और उसके घर का पता,

उसकी जाति और उसके बारे में,

उसके धर्म और माँ-बाप का नाम,

उसकी शिक्षा और उम्र के बारे में।


नहीं पूछा कभी उससे यह भी,

कि वह यह काम क्यों करती है,

ऐसी क्या है उसकी मजबूरी,

जबकि वह लगती है बहुत अच्छी,

खूबसूरत-सुंदर और बहुत ही मासूम।


बहुत ही नाजुक है उसके हाथ,

जो नहीं है सक्षम अभी वह,

उठाने को भार किसी घर का,

बहुत ही अबोध है वह अभी,

इसीलिए बनी है वह बाल मजदूर।


देखती है वह मासूमियत से मुझको,

शर्माती है कुछ मुझसे कहने में,

कुछ मुझको भी डर है,

उसके समाज और परिवार से,

इसलिए कुछ कह नहीं सका मैं उससे।


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