कुछ दिन का बसेरा
कुछ दिन का बसेरा


ऐ दिल तुझमें रातें बहुत है, है कुछ नया सवेरा।
है तुझमें यादों की सन्दूक और पुराना घर मेरा।
कोने में दफ़न कर दी हमने, बगावत की सामग्री
क्योंकि कुछ दिन का बसेरा तेरा कुछ दिन का बसेरा।
वो मोहब्बत थी या रुखसत होने का एक बहाना।
वो चाहत थी या जुदा होने का एक नया बहाना।
सम्भालना था खुद को मुझे जब तुमसे मेल* हुआ
गिराने का था या संभालने का गिरा हुआ बहाना।
कुछ बातें याद है, कुछ रफ्ता - रफ्ता भूल गया।
चलते हुए राही तू, रास्ता ही रास्ता भूल गया।
अब तो सोच लिया था, भटकते ख्वाबो ने गर
गिर ही गए चाशनी में, तो क्यों न मिठाई की तरह घुल गया।
तू जा खुश रह तेरी तमन्नाओं की चिट्ठी भेज देना।
पूरी करूँगा हर वादें पर, वादों की चिट्ठी भेज देना।
जिस दिन ना कोई जवाब मिले तो, समझ लेना कि
लिखा था कब्र पर खुद के लिए - हे
कब्र मेरी थोड़ी मिटटी उड़ाकर भेज देना।