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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

कुछ-बिगड़े, कुछ-सुधरे काम

कुछ-बिगड़े, कुछ-सुधरे काम

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आज पंछी आसमाँ में उड़ रहे है

आज धुंए के बादल कम हो रहे है

चलो अच्छा है कोरोना की वजह से,

कुछ तो काम जग अच्छे हो रहे है


हमने स्वार्थीपन में ताजा हवा को

आसमाँ में उड़ने वाली कला को

बहुत अरसे से ख़त्म कर दिया था

आज मजबूरी में अच्छे काम हो रहे है


ओजोन परत का घाव भर रहा है

कॉर्बन उत्सर्जन भी कम हो रहा है

चलो इस लोकडाउन कि वजह से,

सारे जग का प्रदूषण कम हो रहा है


ख़ास हम प्रकृति से खिलवाड़ न करते,

कोरोना से हालत इतने भी न बिगड़ते

प्रकृति माँ, हमारी रक्षा ऐसे कर लेती,

जैसे सूर्य की किरणे तम को हर लेती


पेड़ों को हमने बहुत काटा,

अब रोते है महामारी आई है

जानवरों, पक्षियों को मारा,

अब रोते है महामारी आई है


अब हम प्रकृति का ख़्याल करेंगे

धर्म मे लिखा वो ही बात करेंगे

फिऱ देखना दोस्तो,

ताजी हवा के साथ-साथ

हम भी उड़ते पंछी होंगे।


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