कठपुतलियां
कठपुतलियां
कठपुतलियां हैं
जीवन के रंगमंच की
जुड़ी हैं
जिन धागों से,
जो सभी के,
धागों को नचाता है।
किसी को,
वो कठपुतली वाला,
नजर नहीं आता है।
ढील देता है
सबको,
अपने-अपने किरदार में,
परखता है हर इंसान को,
अपने दिए हुए संस्कार से,
देखता रहता है सबको,
उनके अदा कियें किरदार से।
कैसे भटक रहे हैं
उलझे हैं,
किन ख्यालात में
भूल जाते हैं जो।
हम हैं किसके हाथ में,
सोचते हैं ?
बस हम ही हैं
इस संसार में,
सब को नचाते फिरते है।
कभी पैसे,
कभी ताकत के अंहकार से।
लेकिन सोचते नहीं
कब उसके हाथ के,
धागे खिंच जाते हैं।
जीवन के रंगमंच से,
कितने किरदार निकलते,
और कितने नए आ जाते हैं
कठपुतलियां नाचती रह जाती हैं
पर धागों से बंधी होकर भी,
उस धागे वाले तक नहीं पहुंच पाती हैं।
और संसार की कठपुतलियां,
एक दूसरे को नचाने में ही उलझ जाती है।
