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Akhtar Ali Shah

Abstract

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Akhtar Ali Shah

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कठपुतलियां

कठपुतलियां

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गीत

कठपुतली गर बने किसी के

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नाच नाचकर नाच नाचकर,

जीवन में थक जाओगे। 

कठपुतली गर बने किसी के,

हाथों की पछताओगे।

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ऐसा काम करो मत कोई,

जिससे तुम हथियार बनों।

दुनिया में गर आये हो तो, 

लोगों खैवनहार बनो। 

कमजोरी जो पकड़ तुम्हारी,

कोई तुम्हें चलाएगा।

कांधे पर बंदूक तुम्हारे,

रख के खुद बच जाएगा।।

कालिख मुंह पर पुत जाएंगी, 

मुखड़ा किसे दिखाओगे।

कठपुतली गर बने किसी के,

हाथों की पछताओगे। 

*******

उजियारों में रहो अंधेरों,

से निकलो राहत पाओ।  

पाप हमेशा अंधियारों में,

होते तुम बाहर आओ। 

खड़े रहो अपने पैरों पर,

ताकत भी आ जाएगी।

मदद करोगे खुद अपनी तो,

मंजिल तुम्हें बुलाएगी।

श्रम बेकार नहीं होता है,

जीवन सफल बनाओगे।

कठपुतली गर बने किसी के,

हाथों की पछताओगे।  

*******

यही लगेगा लोगों को तो,

ये सब काम तुम्हारा है।

तुमने ही तो लातों घूसों,

से पीड़ित को मारा है।

अपना भी गुस्सा वो तुम पर,

एक दिन यार निकालेगा,

बदला लेगा तुमसे ही वो,

तुम्हें जेल में डालेगा।

जेलों का खाना खा खाकर,

क्या तुम जश्न मनाओगे।

कठपुतली गर बने किसी के,

हाथों की पछताओगे।

********

तुम" अनंत"हो प्राणवान गर,

तुममें भी रब रहता है।

कुछ करने से पहले क्या दिल,

कभी नहीं कुछ कहता है।

दिलकी सुनो करो फिर वो ही,

क्यों इससे भय खाते हो।

जो आदेश खुदा देता है,

उससे क्यों कतराते हो।

जीवन जीने का जीवन में, 

मजा तभी कुछ पाओगे।

कठपुतली गर बने किसी के, 

हाथों की पछताओगे।

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अख्तर अली शाह "अनंत" नीमच


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