कठपुतली
कठपुतली
कठपुतली भी शर्माती है
हम इंसानों से घबराती है
देख हम इंसानों का बर्ताव
वो भी रो रोकर सो जाती है
कठपुतली भी शर्माती है
कुछ इंसान चलते है इशारों से
वो भी तो कठपुतली की ही
बिरादरी कहलाती है
जिस्म भले हो इंसान का
हरकतें कठपुतली की कहलाती है
आज इंसान का इंसान से नाता
लगता कठपुतली सा है
आज इंसान ही इंसान को
कठपुतली बनाता है
दुश्मनों को छोड़ो
खुद का दिल ही हमें
कठपुतली बनाता है।
