क्षणिकाएँ
क्षणिकाएँ
अचानक बर्रेया ने मेरे माथे पर
सर्जिकल स्ट्राइक करके
विषैला डंक मार के
असहनीय चुभन, पीडा, दर्द , घाव
देक रघुसपैठ, तानाशाही,
आतंकी प्रकृति दर्ज कराके
गायब हो गयी
मेरी दुखती नस - नाड़ियों ने जहर को पीकर,
दर्द को सहन करके शिवत्व की
सहिष्णुता को जता दिया।
माँ तो मोहब्बत, प्रेम, ममता का नाम है
ईंट - गारे से बने मकानों को घर बना देती है
माँ शब्द पर चाँद बिन्दु है लगा इसलिए
सारी दुनिया की माँ चाँद जैसी
सौम्य, सुंदर और शीतल होती है ।
नारी को इतनी आजादी दे दी
घर से ऐसी निकली कि हाथ में नहीं आती है।
बेटी तू बार - बार मायके क्यों आ जाती है ?
तू तो पराया धन है ससुराल ही अब तेरा घर है
माँ ससुरालवाले कहते हैं तू तो पराए घर से आयी है
हमारा खून नहीं है फिर माँ बता
मेरा घर कौन - सा है ?