क्षणिका
क्षणिका
हम, सदैव हम ही से मिलने को
कतराते रहे
डर था
हमें आईना न दिखा दे।
हम दूसरों से
नज़दीक से मिलने को
कतराते रहे
डर था
हमारी पोल खोल दें।
वैश्विक महामारी पहली बार
नहीं फैली,
कोई न कोई वायरस
आ जाता है
हर सदी में
मानव जाति पर
हमला बोलने,
तबाही मचाने।
कुदरत का असूल है,
आ जाती है यह
एहसास करवाने,
मानव जितना मर्ज़ी
ताकतवर समझे
स्वयं को,
प्रकृति के आगे शून्य है।