Geetika Kaur

Abstract

2.3  

Geetika Kaur

Abstract

कशमकश

कशमकश

1 min
7.3K


एक ज़िंदगी में

दो जीते हैंं लोग,

एक दिखावे की

दूजी खुद के लिए,

एक-दूजे पर है

दोनों भारी,

कशमकश रहती ये

हरदम जारी।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract