करुणा निधि
करुणा निधि
करुणा कर करुणानिधे, अंतर तिमिर मिटाओ।
जीवन पथ का सार तुम्ही,उचित राह सुझाओ।
मैं अज्ञानी मूढमति भटक रहा हर पल।
मेरी इस करुण प्यास को दरस अमृत चखाओ।
कुटिल मन भ्रमित सदा, मोह माया में लीन,
मार्गदर्शक बन मेरा,ये अंधकार मिटाओ।
जिस काया के प्रेम में, मैं अनमोल
जीवन को खो रहा,
वो तो जन्मा न और न मरा कभी।
फिर इंसा क्यों रो रहा।
काया मिट्टी माया मिट्टी ,संग-साथी सब मिट्टी हैं।
फिर भी आंखों से ये मोह की पट्टी क्यों नही हटती है।
हर दिन तो मैं मर ही रहा हूँ,
फिर मौत का इतना डर क्यों है।
मुझमे भी अगर तु ही विधमान है,
तो इतना अंधेरा अंदर क्यों है।
तेरे पथ को भूल गया मैं, अपनी मैं
में झूल गया मैं,मैं कितना अज्ञानी हूँ।
करुणा कर करुणानिधे, तेरे दर का
मैं भिखारी हूँ।
मार्ग दिखा दो तुम तक आने का
तभी खुद तक पहुंचूंगा मैं।
तड़प जगी है बून्द में सागर होने की।
बून्द से सागर बनूँगा मैं।
एक बून्द में उतरा सागर
सागर में एक बून्द बसी तेरा मेरा
सार बस इतना मैं तुझसे तू मुझमें।
