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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract Classics Inspirational

करते रहें योग

करते रहें योग

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त्रस्त त्रिविध तापों से,
 है ज्यादातर संसार।
 मुक्ति मिले कैसे
 कुछ पल कर लें विचार।
सदा स्वस्थ रहे हर तन-मन,
कभी भी व्यापे न कोई रोग।
आचरण-विचार की शुभता,
संग नियमित करते रहें योग।

 विश्व रंगमंच पर,
निभाएंकुछ ऐसा किरदार।
 विदाई के बाद अनुकरणीय हो,
हमारा आचरण व्यवहार।
 सतत् त्यागते रहें त्रुटियॉं,
सद्गुणों का करते रहें योग।
 आचरण-विचार की शुभता,
 संग नियमित करते रहें योग।

 यम नियम आसन ,
प्राणायाम और प्रत्याहार।
 धारणा ध्यान समाधि सहित,
 पूरा होता अष्टांग योग हमार।
 चित्त वृत्ति निरोध हो तो,
 नहीं व्याप सकता है कोई रोग। आचरण-विचार की शुभता,
 संग नियमित करते रहें योग।

सत्पथ के पथिक बन हम,
निस्वार्थ बेशर्त सबको करें प्यार।
 मौत छोड़ अनिश्चित सब कुछ, क्षणभंगुर जीवन नश्वर सारा संसार। तृष्णाओं से ही उपजता,
 है हर एक रोग।
आचरण-विचार की शुभता,
 संग नियमित करते रहें योग।

 न लाए न ले जा सकते,
पर निज लालच और अहंकार।
झोंक देते दुःख की ज्वाला में,
बंद कर देते मुक्ति का हर द्वार।
 दुःख आनंद निज प्रवृत्ति से,
 न बदल सकते कभी दूजे लोग। आचरण-विचार की शुभता, संग नियमित करते रहें योग।


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