कृष्ण तुम
कृष्ण तुम
कृष्ण तुम,
प्रेम की पुकार हो।
इस धरा पर,
चातक मन की,
करुण प्रिय पुकार हो।
कृष्ण तुम..
प्रेम की सुर -ताल हो।
इस धरा पे,
नफरतों का कोहराम है।
प्रेम को मिटाने ,
तत्पर हर इंसान है।
झूठ -फरेब को ,
प्रेम का बस नाम देकर।
फिल्मी धुन -सा,
मतलब से बदल जाता प्यार है।
तुम एक सच्चे प्रेमी के,
चित -चोर हो।
कृष्ण तुम,
प्रेम की पुकार हो।
इस धरा की,
असंख्य राधिकाओं के प्राण हो।
जीवन की चक्की में,
पिसती भावनाओं के त्राण हो।
कृष्ण तुम...
सच्चे प्रेम का मान हो।
इस धरा पे,
गंगा -यमुना के तटों पर बैठी।
असंख्य मीराओं की,
करूण चितकार हो।
कृष्ण तुम....
प्रेम की अमिट आस हो।
कृष्ण तुम...
प्रेम की अमर प्यास हो।