करो उजागर प्रतिभा अपनी
करो उजागर प्रतिभा अपनी


प्रतिभा छुपी हुई है सब में, करो उजागर,
अथाह ज्ञान, गुण, शौर्य समाहित, तुम हो सागर।
डरकर, छुपकर, बन संकोची, रहते क्यूँ हो?
मन पर निर्बलता की चोटें, सहते क्यूँ हो?
तिमिर चीर रवि द्योत धरा पर ले आता है।
अंधकार से डरकर क्यूँ नहीं छिप जाता है?
पराक्रमी राहों को सुलभ सदा कर देते,
आलस प्रिय जिनको, बहाने बना ही लेते।
तंत्र, मन्त्र, ज्योतिष विद्या, कर्मठ के संगी,
भाग्य भरोसे जो बैठे वो सहते तंगी।
प्रबल भुजाओं को खोलो, प्रशंस्य बनो,
राष्ट्रप्रेम हित योगदान का तुम भी अंश बनो।
निश्शंक होय बढ़ते जो, मंज़िल पाते हैं।
बल-बूते पर अपने वो अव्वल आते हैं।
परिचय श्रेष्ठ बनाना हो तो, आगे आओ,
वरना दूजों के बस सम्बन्धी कहलाओ।