कर्मयोगी
कर्मयोगी
जीवन है एक नाटक,
सब निभाते अपना किरदार।
अपने हिस्से का अभिनय,
करता यहाँ सारा संसार।।
अपनी प्यास बुझाने को,
स्वयं कूप खोदना पड़ता।
दिनकर जब खटकाते हैं,
तब द्वार खोलना पड़ता।।
नदी न प्यास बुझाने को,
कभी पास किसी के आती।
चाँदनी रातों में भी दीपक,
जल न पाते बिन बाती।।
कर्मयोगी बन पूरी होती,
मानव तेरी कहानी।
भाग्य के भरोसे न चलती,
तेरी यह जिन्दगानी।
प्रकृति उन्हीं का वन्दन करती,
जो परिश्रम करते हैं।
करते हैं उद्योग दिन-रात की,
परवाह नहीं करते हैं।।
तूफानों से टकराकर भी,
अपना लक्ष्य प्राप्त करते हैं।
अन्तर्मन की शक्ति से हर,
विपदा पर फतह करते हैं।।
चरित्र में अपने प्रेम, मर्यादा,
संयम और शक्ति भरके।
निखारते हैं व्यक्तित्व अपना,
बिखरे रंगों को भरके।।
सृष्टि की अनुपम कृति बन,
कर्मों से अपने जग जीते।
श्रेष्ठ वही मानव है जिसका,
जीवन कर्मयोगी बन बीते।