कोरोना एक अदृश्य शत्रु
कोरोना एक अदृश्य शत्रु
कोरोना ना धर्म देखता है ना जात देखता है,
निष्पक्ष है बड़ा,सबको एक आँख देखता है।
आमिर की कोठी ना ग़रीब की खाट देखता है,
बच्चे हो,महिला,पुरुष,बूढ़े या नौजवान कोई,
ब्राह्मण बनिया,दलित ना अर्ज़ल-अशरफ कोई,
गोरा-काला,गुज्जर-ठाकुर ना जाट देखता है
बड़ा साधा है सबको इन्सान देखता है।
संत साधु,मौलवी ना पादरी का सम्मान देखता है,
मंदिर मस्जिद,अर्थी कफन से ना सरोकार कोई
खाखी-खादी,हरा-भगवा ना परिधान में फर्क कोई,
अपनी जंजीरो में सबको जकड़ने का अरमान देखता है।
टूटे ना उसके मर्ज़ की जंजीर,इन्तेज़ार देखता है
खड़ा दूर कहीं हँस रहा राक्षस की तरह कोई,
बटे समाज में काम अपना,आसान देखता है,
अब ना बनाए दूरी तो निपट जायेगा हर कोई
बड़ा चालाक है, नज़दीकियों में
हमारी मौत का फरमान देखता है।
