कोई अपना है मेरा
कोई अपना है मेरा
कोई अपना है मेरा ,
जो मुझे अपना नहीं मानता…
वो मुस्कुराकर देखता तो है सबको
जैसे वो कभी बुरा नही मानता
वो हज़ार दर्द अपनी मुस्कान तले दबाए रखता है,
अपनी सहनशीलता का बखान नहीं मारता
और वो झूठी मुस्कान मुझे भी देता है ,
मानो जैसे मैं कुछ नहीं जानता…
अरे अगर मैं ना जानता, तो कौन जानता ?
उस हँसी के पीछे छिपे दर्द को
मेरे अलावा कौन पहचानता…
हाँ माना उसने मुझे खुदसे दूर करदिया है ,
पर ये दिल उससे कभी दूर नहीं जाता
क्यूकिं कोई अपना है वो मेरा,
जो मुझे अपना नहीं मानता।

