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Sunoti Haldar

Abstract

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Sunoti Haldar

Abstract

कोई अपना अपना न रहा कोई सपना सपना न रहा।

कोई अपना अपना न रहा कोई सपना सपना न रहा।

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कोई अपना अपना न रहा

कोई सपना सपना न रहा।

पर कुछ सपनों के मर जाने से जीवन

नहीं मरा करता है।

कुछ पानी के बह जाने से सावन नहीं

मरा करता है।

यू तो बचपन के खिलौंने

देखकर आंखे भर आती है।

कुछ खिलौनो के खो जाने से

बचपन नहीं मरा करता है।

ये जिन्दगी हैं जनाब यहां तो

कुछ रिश्ते झूठे हैं,

कुछ रिश्ते सच्चे हैं,

पर कुछ मुखड़ों की नाराजी से

दर्पण नहीं मरा करता है।


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