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Ragini Ajay Pathak

Abstract Tragedy

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Ragini Ajay Pathak

Abstract Tragedy

कन्या भ्रुण हत्या

कन्या भ्रुण हत्या

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दर्द अहसासों में गुम हो जाता हैं।

राते सपनों में हवा हो जाती हैं।

जब नरम हथेलियों की गुनगुनाहट में

करवटें लेती है तू, यूँ तो है सुरक्षित

मेरे अंदर नौ महीने तू।


लेकिन डर बस ये है कि कही बेटी तो नही हूँ तू।

मैं तो खुश हूं तेरे एहसास से ना जाने क्यों

सब दुःखी है तेरे नाम से,

घूमती है, फिरती है, जैसे माँ पुकार कर 

मुझ से कहती हो मुझे दुनिया देखनी है, अभी

मुझे मरना मत क्योंकि मैं बेटी हूं,


पहले तो बेफिक्र रहती थी

अब तो हर घण्टे हिसाब रखती हूं,

तू सांस लेती है भीतर मेरे 

और खुशी मेरे चेहरे पे मुस्कराती है।

तेरे जन्म का पल कैसा होगा,


ये सोच के मन प्रफुल्लित था,

लेकिन तेरा बेटी होना बस यही कसूर तेरा था

जो मार दिया तुझे मिलकर सबने,

कर दिया कत्ल मेरे अरमानों का

अब ना ही प्रसव-पीड़ा सहना,

ना महसूस होगा तेरा पहला रोना


कितना सुहाना संघर्ष है माँ बनना

और अपने बच्चे को गोदमें लेना

लेकिन सबने मुझसे ये हक भी छीन लिया

क्योकि तू एक बेटी थी, और मैं एक औरत थी।


एक केस हत्या का इन हत्यारों पर भी होना चाहिए।

सजाए मौत की सजा कन्या भ्रूण हत्या

वालों को भेज मिलनी चाहिए।


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