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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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कंस रावण संवाद

कंस रावण संवाद

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आज शाम रामलीला मैदान में

रावण का पुतला दहन के लिए खड़ा था

भीड़ में बड़ा शोर था,

मैं भी उसी भीड़ का हिस्सा था,

तभी रावण का पुतला हिलने लगा

भीड़ के साथ मुझे भी

किसी अनहोनी का डर लगने लगा।

पर ऐसा कुछ नहीं हुआ

एक पल में पुतला हिलना बंद हो गया,

रावण के पुतले में कंस की आत्मा का प्रवेश हो गया।

कंस की आत्मा रावण का आत्मा से कहने लगी

यार एक बात मैं आज तक नहीं जान पाया

तुझे भगवान राम ने मारा फिर भी हर साल

तू पुतला बनाकर जलता है

इतने वर्षों बाद भी नाहक ही जिंदा है,

मुझे भी तो भगवान कृष्ण ने मारा 

फिर भी मेरा पुतला क्यों नहीं जलता?

तेरा तो नाम आज तक चलता है 

मुझे तो कोई पूछता तक नहीं है।

रावण की आत्मा मुस्कुरा कर कहने लगी

तुमने अपनों को अपने हाथों मारा

इसलिए भगवान कृष्ण ने तुझे मारकर भी नहीं तारा।

मैं ने राम के हाथों अपनों को मरवाया

खुद भी उन्हीं के हाथों मरा,

यह और बात है कि इसके लिए मैंने

मां सीता का अपहरण तक किया

पर उनके सम्मान पर आंच तक

कभी भी आने नहीं दिया।

मैं राम के बाणों से मरकर

अपने वंश कुल कुटुंब सहित तर गया।

यह रामजी की रामकृपा ही है

कि पुतला बन हर साल जलने के बाद भी

तुम देख ही रहे हो रावण अमर हो गया।

जबकि तुमको भगवान कृष्ण की कृपा

मरने के बाद नहीं मिल पायी

इसलिए तू और तेरानाम पार्श्व में खो गया।

उम्मीद है मेरी बात तू समझ गया होगा

और खेद के साथ कहना पड़ रहा है मित्र

अब तुम्हें मुझसे दूर जाना होगा

वरना सदियों से चला आ रहा नियम टूट जायेगा

रावण के साथ कंस जल नहीं पायेगा

क्योंकि मर्यादा पुरुषोत्तम राम का तीर 

किसी निर्दोष पर नहीं चल पायेगा,

और मेरा हर साल जलने का अनुष्ठान भंग हो जायेगा।

जिसका सारा दोष मुझे दिया जाएगा,

मेरी श्रीराम प्रभु का अपमान हो जायेगा।

कंस की आत्मा ने चुपचाप सुन लिया

सत्य स्वीकार कर रावण की आत्मा को नमन किया

और रावण के पुतले से निकल विदा हो गया,

रावण का पुतला फिर हिला और शांत हो गया,

खुशी खुशी राम के हाथों जलने को तैयार हो गया

सच ही तो है कि रावण फिर से अमरता का

उत्कृष्ट उदाहरण पेश कर गया। 



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