कलम....
कलम....
उठाई हैं कलम.... मैंने
लिखने के लिए..
किसी के रोके ना रुकेगी..
किसी के टोके ना झुकेगी..
क्या ताकत हैं इसमें...
अब ये खुद बयां करेगी..
उठाई है कलम.... मैंने
नकाबपोशों के चेहरे साफ़ करेगी...
असलियत सभी की सामने लाएगी....
बचपन हो या बुढ़ापा....
उम्र का लिहाज नहीं रखेगी...
उठाई है कलम... मैंने
खुद से भी लड़ेगी..
फिर भी जिद्द पर अड़ेगी...
दो चेहरे रखने वालों को
आईना ये दिखाएगी....
उठाई है कलम....मैंने
समाज की सच्चाई को
दिल की गहराई हो..
हर जख्म को नासूर करेगी..
उठाई है कलम.... मैंने
मोहब्बत हो या नफ़रत..
अपना हो या बेगाना...
सच्चा हो या झूठा..
सबको एक माला में पिरोएगी...
उठाई है कलम.... मैंने
हिन्दू हो या मुसलमान..
सिख हो या ईसाई...
हर धर्म हर जाति को
हर खेल हर खिलाड़ी को
सही राह दिखाएगी...
उठाई है कलम मैंने....लिखने के लिए... उठाई है कलम मैंने.....।।
