“ कलम : ब्रह्मास्त्र “
“ कलम : ब्रह्मास्त्र “
मत सोचो मैं विलीन हो गया
शिथिलता के साये में लिपटकर स्तब्ध हो गया
नेपथ्य में क्या कुछ दिन रहे सब ने मुझे
अपने विस्मृति के कोख में रख गया !!
उन्हें मालूम नहीं था कि मेरे अंदर ज्वालामुखी धधक रहा है ,
अपने विस्फोट का अंदर ही अंदर इंतजाम कर रहा है !!
हाथ में ना तीर हैं धनुष मैं रखता नहीं ,
गाँडीव में सिर्फ कलम हैं लिखने से कभी डरता नहीं !!
सपने दिखाते हैं सभी पर पूरा कहाँ होता यहाँ पर ,
लोग खुद बेचैन हैं अपना सीना खुद मापने पर !!
नेपथ्य में रहकर मैं क्रांति को प्रज्वलित करता हूँ ,
बौद्धिक जागरण का फिर से भयंकर ज्वालामुखी रचता हूँ !!
मैं रहूँ या ना रहूँ मेरी लेखनी मेरा अस्त्र होगा !
इसी तरह नेपथ्य से निरंतर प्रहार करता मेरा ब्रह्मास्त्र होगा !!