कलाकृतियां
कलाकृतियां
कला ने अपनी कलाबाज़ियों केे
सतरंगी कालीन बिछाए हैं,
कभी ब्रश हाथ में थमाए,
कभी पेन की धार चलाए,
कभी किस्से नए सुनाए,
कभी कतरनों से नाव बनाए
यानी नित नए करतब सुझाए है।
मन मेरा आतुर सा डोले
हर डोर पकड़ने को मचले
हर रंग में रम जाने को
इत उत दौड़ लगाए है ।
रंगों से मेरी आशनाई है
शब्दों से अमरबेल बनाई है
मुड़े तुड़े कागजों से न जाने
कितनी आकृतियां बनाईं है
बादलों के जुंबिशों से
उड़न खटोला बनाया है
बैठ उसमें अरमान मेरे,
नई कला को ढूंढ रहे
न जाने किस रूप में
फिर से मुझे रिझाए !
असमंजस में खड़ी सोच रही….
क्या अब भी है कुछ बाकि
जो पकड़ में ना आए है
रसपान तो मैंने सब का किया है
अनबुझ सी प्यास ये कैसी है
जो हरदम मुझे सताए है।