अफसाना
अफसाना
शमा है रौशन तो
परवाना होगा ही,
परवाना होगा तो
मौसिकी भी होगी,
मौसिकी होगी तो
तरन्नुम भी होगी,
तरन्नुम होगी तो
तराना भी होगा,
स्याह रात में
चांद चकोर बना होगा,
चांद के पीछे - पीछे
चांदनी भी होगी,
फिर जो दौर चला होगा
तुम खुद ही सोच लो...।
कुछ शिक़वे
कुछ शिकायतें,
कुछ रूठना
कुछ मनाना,
कुछ बहाने
कुछ फ़साने,
ना जाने किस - किस दौर से
शमा फिर गुज़री होगी !
किसी ने सराहा होगा,
किसी ने दोहराया होगा,
कोई आफ़रीन
कोई बेहतरीन...
कोई गमगीन हो
रोया होगा,
हर शख्स ने
आरज़ुओं में तोला होगा,
अपने पैमाने मे छलकाया होगा,
अपने इशारों पे नचाया होगा।
शमा तो फिर शमा थी
जलती रही ...
पिघलती रही,
असुवन से नैना
भिगोती रही,
रात भर यूँ जलती रही,
चांदनी भी बरस कर
थम गई...।
परवाने को भी
होश कहाँ था,
जब तक शमा रही
वह जीता रहा,
शमा बुझते ही
परवाना भी राख हुआ
शमा और परवाने का
किस्सा भी
यूँ तमाम हुआ…!
राख के ढेर से
इक दूजे का
हाल पूछते रहे ..
इक दूजे की
सलामती की
दुआ मांगते रहे,
बस दुआ मांगते रहे...!

