कल हो ना हो
कल हो ना हो
समय मुट्ठी की रेत सा फिसलता जा रहा है ,
हर लम्हा यूँ ही गुजरता जा रहा है,
उन गुजरते लम्हों को फिर से जी लो,
पता नहीं वो लम्हा कल हो न हो।
हर लम्हा एक नयी ख़ुशी ले आता है,
पर वक्त मुट्ठी की रेत सा फिसलता जाता है,
आओ, समय को पकड़े, पर रुकता नहीं समय,
समय न सही लम्हा तो है,
एक ख़ुशी भरा लम्हा ..
तो जी लो वो लम्हा,
पता नहीं वो कल हो न हो!"
