कौन हूँ मैं!
कौन हूँ मैं!
कौन हूँ मैं, कौन हूँ!
खुद को मैं क्या कहूँ?
ना मैं कोई साहित्यकार हूँ,
ना हूँ कोई कलाकार,
मैं हूँ तो बस एक साधारण सी इंसान,
रचा है उसने जो कहलाता है
कायनात का रचनाकार!
कहाँ मेरा ठिकाना है,
विरोधी बड़ा ये जमाना है,
दुनियादारी की समझ नहीं मुझे,
मेरा तो बस रब ही सहारा है!
ना खुद को सर्वगुण सम्पन्न कहूँ,
ना कहूँ गुणों की खान,
मैं तो हूँ बस एक कठपुतली,
डोर है उसके हाथों में
जो कहलाता है परम महान!
ना खुद को निडर कहूँ,
ना कहूँ खुद को बलवान,
मैं तो हूँ किस्सा कहानी का,
जिसे लिखता है मेरा भगवान!