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Taj Mohammad

Abstract Tragedy Action

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Taj Mohammad

Abstract Tragedy Action

कितना तो लिखा है।

कितना तो लिखा है।

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कितना तो लिखा है जमानें ने यूँ तो हर मौजू पर।

गर मैं भी लिखूं तो क्या लिखूँ अब इस जमानें पर।।1।।


ज़िन्दगी भर मैं पढ़ता रहा हर किसी को शौक से।

अब वश है उन्हीं का यूँ कुछ भी पढ़ने पढ़ाने पर।।2।।


लिखना होता है दिल के जज़्बातों को तो दिल से।

पर होने लगा है कारोबार अब लिखने लिखाने पर।।3।।


नींद भी आती नही है रात में लिखनें कीआदत से।

कागज़ कलम लेकर ही सोता हूं अब सिरहाने पर।।4।।


ग़लत फहमी में है ज़माना मेरे उसके रिश्ते को लेकर।

पूंछो ना क्या बीती है कल की रात मुझ दिवानें पर।।5।।


दीवाना है सारा ज़माना लिखे उसके कलाम पर।

पढ़कर हर शख्स झूमता है उसके हर फ़साने पर।।6।।


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