किताब
किताब
#किताब
सारी जिंदगी वह
सिर्फ मुझे पढ़ता रहा
जागकर रातभर
मुझे रटता भरहा
जो ख्वाब बुने थे
मैंने कभी
दिल से
लगाकर पाबंदियां तमाम
उन्हें ढकता भी रहा
यूं तो कई हिस्से है
जिंदगी के
मेरे भी और
उसके भी
मगर हर बार
जिक्र सिर्फ
मेरी जिंदगी का
किस्सा भी रहा
ख्वाहिशे उसकी भी है
ख्वाहिशे मेरी भी
और बुलंदी
की कीमत हमेशा
मान मेरा
मिटता भी रहा
इतिहास शायद
ज्यादा पसंद था उसे
हर बार एक
पुराना पन्ना
मेरी जिंदगी का
पलटता भी रहा
<
p>
जाग कर रात भर
मुझे रटता भी रहा
जिंदगी इतनी भी
मुश्किल होगी
कभी ना सोचा था
मेरी जिंदगी के
हर पन्ने पर
वह इबारत अपनी
लिखता भी रहा
उसकी हर
रिसर्च के बाद
खुद को संभाला है
बेहतर कल की खातिर
न जाने कितने मुखोटो
को पाला हैं
जितना आज को सुलझाती
उतना ही वह
कल को
उलझाता भी रहा
जाग कर रात भर
मुझे रटता भी रहा
आज मुद्दत बाद
सोई हूं सुकून से
अब खबर है कि वह
आज भी मुझे पढता है
सहेज कर
दिल की किताब में
अब रात भर रटता नहीं
समझता है।