किताब से बाते
किताब से बाते
किताब से बात हम नहीं,
वह खुद करती हैं जनाब,
कभी देखे कोई किताब ,
वह कहती है उठा लो मुझे,।
यू देखने से मैं दिख नही पाऊंगी,
झांको मेरे अंदर तो बहुत कुछ,
हैं मेरे अंदर ,अपने अंदर बसी ,
बाते दुनिया की सिखलाऊंगी, ।
सिर्फ देखने से कुछ नही मिलेगा ,
मुझे आलिंगन करना पड़ेगा ,
मैं भी तरसती रहती हूं हरपल,
कोई मिल जाए जो मुझे पढ़ेगा,।