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Mustafa Dhorajiwala Musa Shayar

Abstract

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Mustafa Dhorajiwala Musa Shayar

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किसमें उलझे हो ?

किसमें उलझे हो ?

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बादल और बरसात के अंदर उलझे है

सब अपने हालात के अंदर उलझे हैं


काम की बातें छोड़ के सारे ही बच्चें

बेमतलब जज़्बात के अंदर उलझे हैं


कैसे समझेंगे मालिक की रहमत को !

बंदे खुद की ज़ात के अंदर उलझे हैं


इंसां की क़ीमत समझे बिन आदमी क्यों

माल-ओ-ज़र औक़ात के अंदर उलझे हैं


नाजाने क्यों बैर है? नफरत इतनी है ?

जो हैं ही नहीं उस बात के अंदर उलझे हैं


सच और झूठ में फ़र्क़ नही है कुछ बाक़ी

हम तो अख़बारात के अंदर उलझे हैं


कोई खाये कोई लगाए, अरसे से

रस्म - ए - इल्ज़ामात के अंदर उलझे हैं


दुनिया आज कहाँ से ले के कहाँ पोहंची

और हम अब भी जात के अंदर उलझे हैं


जबसे पंछी शह्र में आ कर रहने लगे

तब से दिन और रात के अंदर उलझे हैं


जिनको "मूसा" राज़ पता हो ख़िलक़त का

कब दुनिया की बात के अंदर उलझे हैं।


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