किसान
किसान
समझ जाओगे किसान का दर्द,
एक बाार खेतों मे हल चलाकर तो देखो
कड़ी धूप हो या शीतकाल ,
हल चलाकर न होता बेेेेहाल
सुबह से लेकर शाम तक कितना थक जाता,
फिर भी आराम नहीं मांगता मैं,
नहीं हुआ है अभी सवेेेरा,
पूरब की लाली पहचान,
चिड़िया के उठने से पहले,
खाट छोड़ उठ गया किसान,
भूख, प्याास और थकान अपनी खाता हूँ,
किसान हूँ जनाब .....
मै अन्न उगाता हूँ
समझ जाओगे तुम ये दर्द
एक बार खेतों मेें हल चलाकर तो देखो
पानी नही, खून से सींचता हूँ
किसान हुु मैै अन्न उगाता हूँ
जमीन जल चुका है आसमान बाकी है
सूखे कुंए अभी इम्तिहान बाकी है
बादलो बरस जाना समय पर इस बार,
किसी का मकान, तो किसी का लगान
चुकाना बाकी हैं ,
किसान हुुं जनाब ,मै अन्न उगाता हूँ!
