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Deepshikha Sinha

Inspirational

4.0  

Deepshikha Sinha

Inspirational

किरदार

किरदार

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243


 बहन, बेटी, पत्नी, माँ, भाभी, बहु

ना जाने कितने किरदार मैं निभाऊँ

कभी मैं निश्छल गंगा, यमुना सी,

कभी काली व दुर्गा रूप दिखाऊँ...  


तौल के देखे, मेरे सब रूप संसारा 

कभी घृणित कभी लांछित ,

कभी मनमोहिनी, कभी वांछित, 

कभी कहे ये है बेहद प्यारा... 


मैं लगाऊँ मुखौटे शक्ति के 

कभी संबल, कभी भक्ति के, 

कभी मुखौटे मुस्कान के 

नवरात्र में तो देवी भगवान के... 


कभी मुखौटे हिम्मती बलवान के 

कभी गूंगी बहरी, कभी अभिमान के 

कभी मैं हो गई तृप्त इस बयान के 

कभी अकिंचन, छुई मुई, पुष्प बागान के... 


इन परत दर परत चेहरों के भीतर, 

तड़प, भय, आक्रोश, से जर्जर 

पुरुष अहम के कीचड़ में गल गल 

होने को उन्मुक्त हर पल


समाज से लड़ती हुयी आज की नारी

तोड़ रही हर ज़ंजीर के जेवर हर बंध, 

स्वीकार नहीं उसे स्वार्थ के वासनिक संबंध 

अब नहीं मंजूर उसे उपनाम अबला, बेचारी!! 


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