STORYMIRROR

Deepshikha Sinha

Inspirational Children

4  

Deepshikha Sinha

Inspirational Children

मातृ ऋण

मातृ ऋण

2 mins
405

आज अश्विन मास के कृष्ण पक्ष में

प्रथम दिवस मेरे गृह के पूजा कक्ष में

मैं कर रहा हूँ ये संकल्प पिंड दान का

ज्ञानी मैं, है दंभ मुझे पूर्वजों के मान का


तृप्त कर पितरों को चला चुकाने पितृ ऋण

कर रहा श्राद्ध, श्रद्धा से मैं, याद मुझे हर चिन्ह

करना है आवाहन परदादा दादा और पिता का

है यज्ञ सोलह दिन तक पूर्णिमा से अमावस्या का


कर के अन्न वस्त्र जल गुड़ तिल चांदी और गौ दान

पाऊँगा मैं एक सफल जीवन रख के बड़ों का मान

सोचा था इस तरह मुक्त हो जाऊँगा मैं पितृ ऋण से

किया वही जो कर रहे सदियों से नहीं भिन्न किसी से


सतरहवें दिन मैं संपूर्ण कर, हर कार्य विशेष

सोया था चैन की नींद, नहीं था कुछ भी शेष

खिलाया था मैंने कौवों को भी खीर और पूरी

फिर भी स्वप्न में वही, मैं और मेरी इच्छाएँ अधूरी


कहा था मुझसे उच्च कुल ब्राह्मण ने देख के हाथ

है पितृ दोष मेरी कुंडली में, नहीं है किसी का साथ

कर लूँ जो मैं दोष निवारण इस साल करके तर्पण

पाऊँगा ऐश्वर्य, सूख और शांति कर के दान व अर्पण


आज मैं फिर असहज अपने अशांत मन को

लेकर अपना दुःखी हृदय और नीरयुक्त नयन को

गया अपनी अंधी बूढ़ी ममतामयी माँ के पास

रख के गोद में सर उसके, लगा उत्तर की आस


कर के मिलाप माँ ने, आँसुओं से मेरे अश्रु का

कही एक पते की बात ,रुक गया मेरा हृदयाघात

बेटा, पितृ ऋण चुकाने के हैं, वेदों में कई उपाय

मातृ ऋण उतारने को क्या कभी कुछ कोई बताये


तेरा मेरा रिश्ता इस दुनिया से है ज़्यादा नौ मास का

आओ उत्तर दूँ मैं बेटा तेरे हर सवाल तेरी हर आस का

मैं माँ हूँ, चाहूँगी हमेशा तेरी ही ख़ुशी जीऊँ या की मरुं

जीते जी पा ले आशीष, क्या पता काग बनूँ की ना बनूँ


माँ पिता बड़े बूढ़ों के प्रेम और त्याग को कर याद

जीते जी रख खुश उनको, क्या करेगा मरने के बाद

नहीं कोई पश्चाताप सफल है बड़ों के अपमान की

आओ चलो करें फिर एक पहल रिश्तों के सम्मान की



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational