ख्यालों की दुनिया
ख्यालों की दुनिया
ख्यालों की दुनिया से बाहर आओ,
हकीकत से तुम रूबरू हो जाओ
बिना परिश्रम सफलता न मिलती,
अपने पे पड़ी आलस्य धूल हटाओ
बिना जले दीप से रोशनी न होती,
पहले खुद को कर्म अग्नि में जलाओ
फिर सारे ख़्वाब साकार कर जाओ
ख्यालों की दुनिया से बाहर आओ
आंखों से अंधता का चश्मा हटाओ
जब तक हाथ-पैर तुम मारोगे नहीं
तीर के उस पार तुम जाओगे नहीं
खुद को पहले पानी में अच्छा डुबाओ
फिर देखो सीप मोती पाओगे या नहीं
अपने भीतर का अंधकार मिटाओ
ख्यालों की दुनिया से बाहर आओ
ख़्वाब देखना बुरा कर्म होता नहीं है,
ख्यालों में रहने से ये पूरा होता नहीं है
ख्यालों
से हटा, खुद को धूप में लाओ,
फिर अपने ही दरख़्त से छांव पाओ
क्या धूप और क्या सर्दी, हर मौसम में,
अपने को दलदल का कमल बनाओ
ख्यालों की दुनिया से बाहर आओ
मुंगेरी के सपने देखने से बाज आओ
खुद को साखी इस काबिल बनाओ
हर जगह अपना निशां छोड़ जाओ
फिर क्या पत्थर, फिर क्या समंदर,
हर जगह पे खुद को गुलाब बनाओ
ख्यालों की दुनिया से बाहर आओ
वर्तमान में रहकर भविष्य सजाओ
भूत को भूलो अभी जिंदा हो जाओ
हकीकत के शीशे का अक्स बनाओ
होनी भले साखी तेरे हाथ नहीं है,
अनहोनी में खुद जुगनू बन जाओ
इस तरह खुद का खुद से तम मिटाओ।