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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Romance

ख्वाहिश

ख्वाहिश

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तुमसे मिलने की तमन्ना दिल में छुपाए बैठे हैं 

कितने नादान हैं जो ऐसे ख्वाब सजाए बैठे हैं 


फलक पे बैठी हुई एक परियों की रानी हो तुम 

बेदर्द जमाने के हाथों अपने पर कटवाए बैठे हैं 


ख्वाबों में ही देखा है तुमको न जाने कितनी बार 

दिल के आंगन में इश्क के गलीचे बिछाए बैठे हैं 


आंखों से छलकती है चाहतों की नशीली मदिरा 

अधरों के हसीं मयखाने में महफिल लगाए बैठे हैं 


हसरतों के मेले सिमट कर रह गये अधूरे ख्वाब से

मधुर मिलन की आस में हम ये बांहें फैलाए बैठे हैं ।



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