ख्वाब
ख्वाब
ख्वाब सिमटे जो मुट्ठी में छूट ही जाएंगे
एक दिन
बनकर बैठे जो अपने रूठ ही जाएंगे
एक दिन
मोहब्बत ख्वाब सी उसकी वादे कांच से
नाज़ुक
हिफाजत कितनी भी कर लूं टूट ही जाएंगे
एक दिन।
ख्वाब सिमटे जो मुट्ठी में छूट ही जाएंगे
एक दिन
बनकर बैठे जो अपने रूठ ही जाएंगे
एक दिन
मोहब्बत ख्वाब सी उसकी वादे कांच से
नाज़ुक
हिफाजत कितनी भी कर लूं टूट ही जाएंगे
एक दिन।