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ख्वाब सुनहरे

ख्वाब सुनहरे

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जुगनू सी चमकती आँखों में

कई ख़्वाब सुनहरे सजने लगे अमर बेल से मन के अन्दर

धीरे-धीरे पनपने लगे।

फ़िर चाहत पूरा करने की उमंगें भी

उड़ाने भरने लगी

एक समय ऐसा आया

जब सच को हम भी समझने लगे।

सपने जो संजोये आँखों ने

वो बनने और बिखरने लगे

सपने और हक़ीकत में अन्तर को बयान वो करने लगे।

ठानी हमने भी अपनी

किस्मत को अजमाने की

मेरा जुनून ज्यों बढ़ता गया

हकीकत में सपने बदलने लगे।

सपने तो सपने होते हैं

इस सच को हम झुठलाने लगे

पूरे होते हैं ख़्वाब तभी जब रंग मेहनत के भरने लगे।


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