ख्वाब देखा है
ख्वाब देखा है
मैंने हवा में उड़ती हुई मौतों को देखा है
मैंने ग़ैरों को नही अपनों को ज़िन्दगी खोते देखा है
मैं अब इन नन्ही आँखों से और क्या देखूं
मैंने अमन का ख्वाब बंद से नही खुली आँखों से देखा है
मैंने टूटे पत्तों को नही ,टूटे घरों को देखा है
मैंने खुली किताबों को नही ,खुले मैदानों को देखा है
मुझे अब और कहर मत दिखा ए ख़ुदा
मैंने जहन्नम में रहकर जन्नत का ख्वाब देखा है
मैंने बड़े महलों को नही , बड़े हादसों को देखा है
मैंने बहते पानी को नहीं, बहते खून को देखा है
मैं देख चूका हूँ खाली पेट और सूखे गले
क्योंकि मैंने बिना सेहरी और बिना इफ्तार के रोज़ो को देखा है
मैंने दुनिया तो नहीं देखी, पर इसके चलने के उसूल को देखा है
जो ताकतवर है वही सही है इस सोच को देखा है
मैं क्यों ना करूंं अब मौत की फरमाइश
मैंने खुदा को नही बस शैतान को देखा है !
