खुशियों के बीते दिन
खुशियों के बीते दिन
जिन्दगी लिखूं या कहानी लिखूं
आज फिर लगता है
अपनी जुबानी लिखूं।
वो खुशियों के बीते दिन
अभी कल ही के तो थे।
ऐसे बदला सब कुछ
जैसे कागज की कश्ती को
मनभावन किनारा न मिले।
इस जीवन रूपी नईया के
माझी सिर्फ तुम हो
लेलो पतवार अपने हाथों में
हमारी सांसों के वास्ते ।
क्या पता कौन सा दिन
जिन्दगी का आखिरी हो
जी लो इसे उड़ते पंछी की तरह
खुले आसमान के नीचे।
