खुद से खुद की मुलाकात
खुद से खुद की मुलाकात
खुद की खुद से,
कभी मुलाकात न हुई।
देखते रहे दुनिया को,
खुद से कभी बात नहीं हुई।
दूसरों को जानने में,
निकल गई उम्र।
खुद को कभी जानने की,
याद न रही।
खुद से मुलाकात करते,
तो होता अलग जीवन।
जीवन को नहीं लगते,
कभी चिंताओं के घुन।
न सोचा न विचारा,
न कभी खुद पर दिया ध्यान।
बांटते रहे सदा,
दूसरों को ज्ञान।
अपने को आंकते रहे,
दूसरों की नजर से।
हम खुद क्या है,
न कह सके फक्र से।
समय रहते कर लो,
खुद से मुलाकात।
जाग उठेगा खुद ही,
अटूट आत्मविश्वास।
क्या कर सकते थे,
क्या करते रहे उम्र भर !
पछतावा न रहे शेष,
जब बीत जाए ये उम्र ?