STORYMIRROR

Deepika Raj Solanki

Inspirational

4  

Deepika Raj Solanki

Inspirational

खुद से जो मैं इश्क करने लगी

खुद से जो मैं इश्क करने लगी

2 mins
388


 खुद से ज्यों इश्क़ हुआ मुझे,

 बर्ग-ए-गुल की तरह  खिल उठीं हूं।

 इश्क़ के इत्र में भीग कर, मैं अब महकने लगी हूं,

 ख़ूबसूरत लगने लगा है जहां मुझे तब से बहुत,

 जब से मैं अपने इश्क़ में पड़ी हूं।


 तआरुफ़ नहीं मोहताज मेरा, अब किसी मुंतजिर का,

 मैं अब समय की सुइयों के साथ दौड़ने लगी हूं।

 चांद-तारों से बातों में अब अपनी रातें नहीं गुज़ारा करती 

 अब मैं खुद के लिए ख्वाब बुनने लगी हूं 

 तकियों की पिन्हा में अश्क ज्यों पड़े थे,

 दे आजादी उन्हें मैं,आज खुल कर हंसने लगी हूं,

 शीशे में देख जमाल अपना,हबीब अपने से करने लगी हूं।


 इंतजार में जितनी काटी तन्हाइयाँ

अब उन तनहाईयों से दिल अपना बहलाने लगी हूं,

 बर्ग-ए-गुल की तरह अब मैं खिल उठी हूं।

इश्क़ कर के खुद से,हलावत जुबां में चढ़ गई ज्यों,

कि

दोस्तों के साथ दुश्मनों को भी प्यार से पुकारने लगीं हूं,

अकीदत अब बस मै ख़ुदा की रखने लगी हूं,

पाकीज़ा शख्शियत की मलिका मैं,

इल्ज़ाम की फेहरिस्तों से डरने कम लगीं हूं,


इश्क़ के आगोश में आ कर,रुह को अपनी सुकुन देने लगी हों,

इश्क़ खुद से हुआ तब से, तिलिस्म इसका आंखों में

दूसरों के देखने लगी हूं।

मुखालिफ़ो के मुंह से भी अपनी तारीफ़ सुनने लगी हूं,

गुरुर नहीं इस पे मुझे, मैं बन मुर्शिद इश्क़ की,

आयतें प्यार की गाने लगी हूं,


इज़हार -ए- मुहब्बत खुद से पागलों की तरह करनें लगी हूं,

रोशनी बन अब बेबसी के अंधेरों को मिटाने लगी हूं

खुद से इश्क़ कर मैं,

बर्ग-ए-गुल की तरह खिल उठी हूं।।

*बर्ग-ए-गुल-फूल की पंखुड़ियां

*मुंतजिर-प्रतीक्षित, awaited,ताआरुफ़-परिचय

*जमाल- सौंदर्य

*अकीदत- श्रद्धा,मुखालिफ़-विरोधी

*हलावत-मिठास

*हबीब- फरमाया

*मुर्शिद - धार्मिक गुरु


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational