खुद को पाया है
खुद को पाया है
तेरे आने में...
और मेरा हो जाने में...
मेरे ही रंग में तेरा रंग जाने में...
फिर एक दिन अचानक
तेरा बिन बोले चले जाने में...
थोड़ा खोया है, थोड़ा
खुद को पाया है मैंने।
उन बरसती बूंदों में...
और उनमें भीग जाने में...
रंगों में बसन्त हो जाने में
फिर एक दिन अचानक
पतझड़ सा उदास हो जाने में...
थोड़ा खोया है, थोड़ा
खुद को पाया है मैंने।
उस एक गली में...
और वहां बारहा जाने में...
उस एक मकां के इर्द-गिर्द रुक जाने में...
फिर एक दिन अचानक
उसी की धूल हो जाने में...
थोड़ा खोया है, थोड़ा
खुद को पाया है मैंने।
पुराने से उस खंडहर में...
और उसी मे दफन हो जाने में...
तेरे अक्सर वहाँ आने-जाने में...
फिर एक दिन अचानक
मेरे इतिहास हो जाने में...
थोड़ा खोया है, थोड़ा
खुद को पाया है मैंने।