खुद की पहचान
खुद की पहचान
खुद की पहचान करो
ख़्वाब को उड़ान दो
जो खोया सो खोया
जो पाया सो पाया
जो बीता वह बीता
क्यों चीखना चिल्लाना ?
समय एक पहिया है
जो नीचे है वह ऊपर होगा
जो ऊपर है वह नीचे आएगा,
फिर थके हुए क्यों बैठे हो !
तुम ही वर्तमान हो,
भविष्य भी तुम ही हो
जो रणभूमि में नहीं गया
उसको क्या मालूम है
क्या होता है, जीना मरना,
मर कर भी अमल होना..
अब जाने दो उस वक्त को
जो निकला है रेत सा
जो बचा है चिंगारी सा
उसको जरा हवा दो,
मशाल जरा फूंक दो..!!
