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Manasi Naik

Children Drama

3.0  

Manasi Naik

Children Drama

खोया बचपन

खोया बचपन

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मुझे तलाश है उन मासूम लम्हों की

भूले बिसरे दिनों की


बचपन के खोए पलों की,

उम्मीद के झरोखों की


याद आता है वो

बेझिझक दोस्तों के घर जाना

देर शाम तक मैदान में खेलना


माँ के चार बार बुलाए बिना

वापस न लौटना


न डर था कुछ खोने का,

न होड़ थी कुछ पाने की


बस मग्न थे अपने आप में

धुन थी मज़े उठाने की


मज़े करने के न लगते थे पैसे

बस चाहिए थे दोस्त


जो करें बातें ऐसे,

कि हर पल हो जाए मस्त


उन दिनों खुशियाँ मिलती थी

छोटी-छोटी चीजों में


किसी गाने में,

किसी खाने में


कभी बेवजह घूमने में

तो कभी किसी किताब में


खुशियों की कीमत कम थी,

पर बेहद अनमोल थी


आज सब कुछ है,

पर कुछ छूटा हुआ है

कहीं अंदर तक टूटा हुआ है


जोड़कर रखने की कोशिश में,

हाथ से फिसल रहा है


चाहकर भी न भुला पाऊँ

उन लम्हों को


जिंदगी की नींव रखकर

खुद डूब गए उन बचपन के दिनों को।।


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