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Dr. Manasi Naik

Abstract

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Dr. Manasi Naik

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घुटन

घुटन

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एक अजीब सी घुटन है

सब कुछ सही है

फिर भी एक खालीपन है।


दिन-दिन बस चला जा रहा है

न रास्ते का होश

न है मंजिल का पता

चलते रहना मेरी किस्मत है।


टूटकर गिरे या गिरकर टूटे

क्या फ़र्क पड़ता होश में आकर

रोना ही तो है।


न शिकवा किसी से

न है आशा किसी से

कि कोई आकर मुझे उबारे

उठना मुझे स्वयं ही है।


घुटन से निकलना मुझे ही है

शुरुआत कहाँ से करूँ

ये नहीं पता है।


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