घुटन
घुटन


एक अजीब सी घुटन है
सब कुछ सही है
फिर भी एक खालीपन है।
दिन-दिन बस चला जा रहा है
न रास्ते का होश
न है मंजिल का पता
चलते रहना मेरी किस्मत है।
टूटकर गिरे या गिरकर टूटे
क्या फ़र्क पड़ता होश में आकर
रोना ही तो है।
न शिकवा किसी से
न है आशा किसी से
कि कोई आकर मुझे उबारे
उठना मुझे स्वयं ही है।
घुटन से निकलना मुझे ही है
शुरुआत कहाँ से करूँ
ये नहीं पता है।