ठहर जा ऐ ज़िन्दगी
ठहर जा ऐ ज़िन्दगी
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ठहर जा ऐ ज़िन्दगी
थोड़ा सा हिसाब कर लूँ
कितना खोया कितना पाया
अंदाज़ लगा लूँ
पथरीली इन राहों पर
तुझे चुनते-चुनते
बड़ी दूर निकल आए हम
शुरुआत कहाँ की थी
उस जगह को जान लूँ
मिलते बिछड़ते राही
कभी दर्द देते
देते कभी सौगातें
उन सब को फिर याद कर लूँ
कुछ ग़म के पलों को भुला दूँ
कुछ खुशनुमा पलों की जगह बढ़ा दूँ
कितना अच्छा होगा
अगर बीते पलों को
जैसे चाहूँ संवार दूँ