कहिये कष्ट न मित्र से
कहिये कष्ट न मित्र से


कहिये कष्ट न मित्र से, यही प्रीति की बान,
तुच्छ न हों निज दृष्टि में, बना रहे सम्मान।
बना रहे सम्मान, मान खो कर क्या जीना,
मित्र न पाये जान, पड़े चाहे विष पीना।
लिये शुभेच्छा साथ, मित्र के हित नित रहिये,
सुख दुख में दें साथ, नहीं दुख अपने कहिये।
द्रुपद सुता की अस्मिता, को कर दिया सनाथ,
करो मित्रता श्याम से, जो अनाथ का नाथ।
जो अनाथ का नाथ, साथ है सदा निभाता,
सुन कर विकल पुकार, साँवरा दौड़ा आता।
कर दुष्टों का नाश, पीर हर ली वसुधा की,
तुरत बचाई लाज, टेर सुन द्रुपद-सुता की।
कहते रहते तुम सदा, कृष्ण तुम्हारा मित्र,
तुम भिक्षुक वह भूप है, लगती बात विचित्र।
लगती बात विचित्र, द्वारिका का वह राजा,
कहता कभी न भूल, मित्र द्वार तू मेरे आजा।
बन त्रिभुवन के नाथ, वहाँ वे सुख से रहते,
खाते भिक्षा माँग, श्याम से कष्ट न कहते।