खिलने दो मुझको
खिलने दो मुझको
खिलने दो मुझको मत तोड़ो,
मैं फूल तुम्हारी बगिया का,
पतझड़ इक दिन खुद आएगा,
और आकर मुझको रोकेगा,
अपने सर्द थपेड़ों से,
पीठ मेरी थप ठोकेगा,
इक रोज़ कहीं जब खुशबू मेरी,
मदमस्त फिज़ा में महकेगी,
तुम आँखें मूँद बस कह देना,
मैं माली था उस बगिया का।