वेदना
वेदना
कहाँ तक कोई उम्र तलाशूँ
कहाँ तक कोई फासला करूँ
तुम बेरुखी में पाला वहम
आनंद का विरोध करते हो
मैं सह लेता हूँजब तक
कब तक तुम आहें भरते हो
इक रात न होगीक्या होगा
जीवन निर्बाध हैकल भी होगा
हाँ कुछ निढाल होता है
जब जीवन सादा होता है
माना तुमसा होनातुममें बस ही होता है
क्यों मूक बधिर की सी भाषा
गूढ़ परत में प्यार का वादा
अमृत तुला की डोर से लटका
सौदा भी लोभी होता है
प्रियवरचाह कितनी है
फिर भूख में सौंधा आटा
जीवन कालाकाला होता है
हैं 'लपटें 'यौवन रस निज धारा
सुख भर से बस क्यों निबटारा !
लिए विछोह भी अपनापन सा
क्या प्रेम नहीं वो उलटी धारा ?
खुद बनकर दर्पणनिखरा जब वो
आहट रुपी साँसें कितनी ?
तुम भी कब तक मन भरते हो
मैं चाहत की बेलरी मूरत
तुम मेरे खूंटे से चढ़ते हो
किस राह रहूँकिस थाह सहूँ
मेरा न कोई ठौर रहे
तू मेरा बन जामैं तुझमे निखरूँ
खुद बिखरने में बस वो 'आह 'रहे !
खुद बिखरने में बस वो 'आह 'रहे !